धान एवं बासमती - फसल प्रबंधन
धान भारत की सबसे महत्वपूर्ण अनाज की फसल है। भारत में अधिकतर हर क्षेत्रीय संस्कृति धान को एक महत्वपूर्ण फसल मानती है। त्योहारों के वार्षिक सूची में धान के फसल चक्र के आधार पर कई उत्सव होते हैं। हालांकि वर्तमान में देश की तुलना में इसकी औसत उपज कम है। चावल की उत्पादकता में वृद्धि से ही देश कि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
इसी प्रकार, चावल की किस्म बासमती अपनी विशेष खुशबू और स्वाद के लिए जानी जाती है। भारत में पिछले कई शताब्दियों से इसकी खेती की जा रही है। दुनिया में इसकी बढ़ती मांग के साथ, बासमती की वैज्ञानिक खेती बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। बासमती चावल की विशिष्ट गुणवत्ता के कारण, उच्च उपज के लिए इसकी विभिन्न विविधता बहुत महत्वपूर्ण है। पारंपरिक किस्म थोड़ी सूक्ष्म है, लंबी अवधि लेती है और तुलना में लंबी है, जो कम उपज देती है। लेकिन बासमती की नई किस्म लंबाई में कम है और उचित फसल सुरक्षा से अधिक पैदावार देती है। बासमती की खेती सामान्य धान के रूप में भी की जा सकती है, लेकिन अच्छी गुणवत्ता और उपज प्राप्त करने के लिए, धान और बासमती की फसलो के लिए निम्न लिखित प्रबंधनों तथा सुझावो का पालन - बढ़ा सकता है आपका उत्पादन उम्मीद से भी ज़्यादा |
धान और बासमती के शुरुआती 0 से 35 दिनों में चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन
चुनौती - खरपतवार
धान की फसल में लगने वाले विभिन्न प्रकार के चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार, घास वर्गीय खरपतवार तथा दलदली खरपतवार फसल को शुरुवाती अवस्था में नुकसान पहुँचाते हैं। ये विभिन्न प्रकार के मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों का अवशोषण करतें हैं। जिससे धान की फसल के वानस्पतिक विकास पर असर पड़ता है। अतः उपज में भारी गिरावट आती है।
खरपतवार प्रबंधन - केम्पा
• केम्पा एक बहुआयामी, चयनात्मक तथा अन्तः प्रवाही खरपतवारनाशक है।
• अंतिम जुताई के 3 से 7 दिनों के भीतर प्रभावी है।
• केम्पा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार, दलदली पौधों ओर घास के खरपतवारो को नियंत्रित करता है।
• केम्पा खरपतवारो की जड़ो द्वारा अवशोषित होकर खरपतवारो की वृद्धि को रोकता है तथा खरपतवारो को तुरंत खत्म करता है।
• केम्पा पर्यावरण के लिए सुरक्षित है, और धान की मुख्य प्रजातियों पर कोई फाइटो इफेक्ट नही छोड़ता है।
प्रयोग मात्रा – 12 ग्रा . प्रति एकड़
प्रयोग का उचित समय - खरपतवार आने से पूर्व और खरपतवारो के 2 पत्तियाँ आने की अवस्था तक या अंतिम जुताई के 3 से 7 दिनों के अंदर प्रभावी है।
चुनौती - पौध संस्थापन और पोषण प्रबंधन
धान की फसल में शुरुआती दिनों में फसल की मूल भूमि में स्थापना, उसके जड़ों का विकास और बढ़ाव एवं मिट्टी से पोषक तत्वों का बेहतर ग्रहण सुनिश्चित करता है कि आने वाले दिनों में आपकी धान या बासमती कि फसल कि संवृद्धि कैसी होगी। शुरुवाती विकास सुनिश्चित करेगी कि आप कि फसल रोग और कीटों एवं मौसम के अनिश्चिताओं से कैसे संघर्ष करेगा और फसल के कटने तक किस प्रकार से उसकी वृद्धि होगी।
प्रारम्भिक चरणों में फसल की अच्छी नीव रखने में आप बिलकुल संकोच न करें बल्कि यह सुनिश्चित करें की फसल को सबसे बेहतरीन पोषण प्रबंधन मिले।
पौध संस्थापन और पोषण प्रबंधन
• माईकोर एक हाई इल्डिंग टेक्नोलॉजी ( आरबस्कूलर माइकोराइजा फंगाइ से निर्मित उत्पाद है ) जिसकी आधुनिक तकनीक मिटटी में माइक्रोबायोम गतिविधियां बढ़ाता है , जिससे आपके खेतों में पौधों के स्वास्थ व् पैदावार में निरंतर सुधार होता है
• माईकोर के प्रयोग करने पर, माइकोराइजा के बीजाणु फसलों के जड़ों में पहुंच जाते हैं और जड़ों के अंदर से काम करना शुरू करते हैं ।
• माईकोर मिट्टी में गहराई तक पहुंच कर फसल को अधिक पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन , फॉसफोरस,कैल्शियम , जिंक , मैग्नेसियम आदि एवं जल प्रदान करते हैं ।
• माईकोर मिट्टी में जड़ों की क्षेत्रफल को बढ़ाता है , जिससे फसल को अच्छी तरह से बढ़ने और किसान को उच्च उपज प्राप्त करने में मदद मिलती है।
• माईकोर जड़तंत्र को बेहतरीन तरीके से विस्तारित करता है।
• माईकोर मिट्टी की उर्वरकता एवं जड़ों से पोषक तत्व को सोखने की क्षमता को बढ़ाता है।
• माईकोर पौधे में पानी सोखने की क्षमता को बढ़ाता है।
• माईकोर पर्यावरण की प्रतिकूलता के प्रति सहनशीलता में सुधार लाता है।
प्रयोग मात्रा – 4 कि .ग्रा . प्रति एकड़
प्रयोग का उचित समय - प्रत्यारोपण के 0 से 3 दिनों के अंदर या मुख्य उर्वरक के साथ अथवा बुआई /प्रत्यारोपण के 15-20 दिनों के अंदर
*माईकोर - सभी प्रकार के उर्वरक एवं मिट्टी पर प्रयोग हेतु तैयार अन्य उत्पादों के साथ मिलने हेतु सक्षम है सिर्फ फफूंदीनाशकों को छोड़कर
• धनजाइम गोल्ड ग्रैन्यूल्स जैविक रूप से वनस्पति (समुद्री घास) से प्राप्त जैविक खाद है।
• धनजाइम गोल्ड ग्रैन्यूल्स कमें हाइड्रोजनीकृत प्रोटीन कॉम्प्लेक्स होता है जो पौधों के प्रोटीन के निर्माण और पादप कोशिकाओं के विकास में बहुमूल्य योगदान प्रदान करता है।
• धनजाइम गोल्ड ग्रैन्यूल्स में एंजाइम या जैविक उत्प्रेरक भी शामिल हैं जो प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बढ़ाता है।
• धनजाइम गोल्ड ग्रैन्यूल्स पौधों की जड़ों की वृद्धि और टिलर की संख्या में वृद्धि करता है।
• धनजाइम गोल्ड ग्रैन्यूल्स मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्वों और नमी को अवशोषित करने और पौधों को मजबूत बनाने में मदद करता है।
• धनजाइम गोल्ड ग्रैन्यूल्स प्रतिकूल मौसम की स्थिति का सामना करने के लिए पौधों में ताकत बढ़ाता है।
• अंतत: उपज एवं पैदावार में वृद्धि होती है।
प्रयोग मात्रा – 5 कि .ग्रा . प्रति एकड़
प्रयोग का उचित समय - रोपाई के बाद 20-25 दिन
*धनजाइम गोल्ड ग्रैन्यूल्स - सभी प्रकार के उर्वरक एवं मिट्टी पर प्रयोग हेतु तैयार अन्य उत्पादों के साथ मिलने हेतु सक्षम है।
चुनौती - तना छेदक कीट
धान की फसल के विभिन्न चरणो मे तना छेद के कीट के आक्रमण से फसल की उपज को काफ़ी नकुसान पहुँचता है। इस कीट का लार्वा अपनी शुरूआती अवस्था में पत्तियो को काफ़ी नकुसान पहुँचता है तथा पौधों के तने में प्रवेश कर जाता है जिससे धान के पौधे का बीच वाला हिस्सा सुख जाता है जिसे हम ‘डेड हार्ट’ कहते हैं। इस कीट का प्रकोप बालियाँ निकलने के समय होता है जिससे फसल को भारी नुकसान पहुँचता है। इस कीट के प्रकोप से बालियाँ सूख कर सफदे रगं की हो जाती है। जिसे ‘व्हाइट इर्यर हेड’ कहते है। प्रभावी पौधे की बालियाँ आसानी से बाहर निकल जाती है।
कीट प्रबंधन
• केलडान 4G नेरिस्टॉक्सिन एनालॉग्स समूह का कीटनाशक है, जो धान की फसल में तना छेदक तथा पत्ता लपेट कीटो का प्रभावी तरीके से नियंत्रण करता है।
• केलडान 4G सम्पर्क, अन्तः प्रभावी तथा स्टमक एक्शन द्वारा काम करता है।
• केलडान 4G एक ताकतवर कीटनाशक है जो कीटो को लम्बे समय तक नियंत्रित करता है।
• केलडान 4G पौधों पर फाइटो- टॉनिक असर छोड़ता है जिससे पौधों में कल्लों की संख्या में वृद्धि होती है।
• केलडान 4G वातावरण को सुरक्षित रखने के साथ प्च्ड प्रणाली के अनुकूल है।
प्रयोग मात्रा – 7.5 -10 कि .ग्रा . प्रति एकड़
प्रयोग का उचित समय - रोपाई के 15 - 25 दिन में
चुनौती - पत्ता लपेट कीट
पत्ता लपेट कीट का लार्वा धान की पत्तियों को लपेट देता है तथा पत्तियों को अन्दर से खाना शुरू कर देता है जिससे पत्तियों पर सफ़ेद धारियाँ बन जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कमी आती है जिससे पौधों में भोजन बनना कम हो जाता है। फलस्वरूप फसल की उपज में भारी मात्रा में गिरावट आती है।
कीट प्रबंधन
• मोरटार अन्तः प्रवाही, स्टमक तथा सम्पर्क क्रिया द्वारा काम करता है।
• मोरटार अपनी अन्तः सतही (ट्रांसलैमिनार) कार्य प्रणाली के कारण यह कीट के सभी चरणों जैसे - अण्डा, लार्वा तथा वयस्क को प्रभावी रूप से नियंत्रित करता है।
• मोरटार पत्ता लपटे तथा तना छेदक कीटो को प्रभावी रूप से लम्बे समय तक नियंत्रित करता है।
• मोरटार पौधे के विकास तथा कल्लों की संख्या बढ़ाने में भी मदद करता है।
• मोरटार धान की पतियों को सख्त बनाता है।
• मोरटार पौधों को स्वस्थ एवं हरा बनाता है जिससे उपज में वृद्धि होती है।
प्रयोग मात्रा – 200 ग्रा . प्रति एकड़
प्रयोग का उचित समय - रोपाई के 26-60 दिन में
चुनौती - शीथ ब्लाइट एवं ब्लास्ट
धान की फसल में शीथ ब्लाइट रोग को कल्ले निकलने के समय से लेकर बालियाँ निकलने के समय तक देखा जाता हैं। यह पौधों के तने के निचले हिस्सों पर आँख के आकार की हल्के हरे रगं से लकेर श्श्वेताभ रंग की संरचनायें बनाता है जो आपस में संगठित होकर पौधों के अन्य हिस्सों की ओर वृद्धि करती हैं। यह पौधों की शीथ तथा पत्तियों को नकुसान पहुचाता है। यह अनुकूल तापमान (27-32℃) तथा अनुकूल आद्रर्ता (95 %) में सामान्यतः तेजी से बढत़ा हैं।
चुनौती - पत्ता लपेट कीट
धान की फसल में ब्लास्ट नामक रोग पौधे की पत्तियों को नुकसान पहुँचाता है। रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर डायमण्ड के आकार का घाव देखा जा सकता है जो कि सफेद या स्लेटी रंग के बॉर्डर से घिरा होता है। ये घाव आपस में संगठित होकर सभी पत्तों को नष्ट कर सकते हैं। यह रोग पौधों के अन्य हिस्सों जैसे गर्दन, तने की गाँठों, ईयर हेड्स, कॉलर तथा सहगाँठों को भी प्रभावित करता है।
रोग प्रबंधन
• गौडीवा सुपर एक अभिजात फफूँदनाशक है जो कि विश्व के दो अति आधुनिक रसायनों के संयोजन से बना है।
• गौडीवा सुपर एक संपर्क, अतः प्रभावी तथा अन्तः सतही (ट्रांसलैमिनार) फफूँदनाशक है।
• गौडीवा सुपर धान के पौधों कों शीथ ब्लाइट तथा ब्लास्ट जैसे रोगों से बचाता है।
• गौडीवा सुपर उपज को बढ़ाने में सहायक है जिससे किसानों को अधिक मुनाफा होता है।
• गौडीवा सुपर धान के झण्डा पत्ता (फलैग लीफ) को अधिक विकसित करता है तथा उसको हरा बनाने में मदद करता है जिससे बालियाँ अधिक विकसित हो पाती हैं।
• गौडीवा सुपर दानों की गुणवत्ता जैसे दानों की चमक, लम्बाई तथा वजन को बढ़ाता है।
• गौडीवा सुपर उपज को बढ़ाने में सहायक है जिससे किसानों को अधिक मुनाफ़ा होता है।
प्रयोग मात्रा – 200 मिली प्रति एकड़
प्रयोग का उचित समय - पहला आवेदन - रोपाई के बाद 40-55 दिन
दूसरा आवेदन – पहले छिड़काव के 15 दिन बाद
चुनौती - शीथ ब्लाइट, भूरे धब्बे और दानों के बदरंग
फफूँद फसल की बालियाँ बनने की अवस्था से लेकर फसल तैयार होने की अवस्था तक प्रभावित करता है। शुरुआती लक्षण जल स्तर के पास पतियों के आवरण पर देखे जाते हैं। पतियों के आवरण पर अंडाकार या गोलाकार या अनियमित आकार वाले हरे-भूरे धब्बे बन जाते हैं। जैसे-जैसे ये धब्बे बड़े होते है, वैसे-वैसे धब्बों के बीच का हिस्सा भूरा होता जाता है, जिससे अनियमित बॉर्डर भूरे या बैंगनी रंग का होने लगता है। पत्ते के आवरण पर कई बड़े धब्बे आमतौर पर पूरे पत्ते के सूख जाने का कारण बनते हैं।
रोग प्रबंधन
• लस्टर एक बहुआयामी, अन्तः प्रवाही फफूँदनाशक है।
• लस्टर के रक्षात्मक प्रयोग से धान की फसल को शीथ ब्लाइट, भूरे धब्बे और दानों के बदरंग होने की बीमारी से बचाया जा सकता है।
• लस्टर में डी.एस.सी. तकनीक और अद्वितीय एस.ई. फार्मूलेशन है।
• हर बाली में अधिक दानो के साथ स्वस्थ एवं एक समान पुष्पगुच्छ मिलते हैं।
• लस्टर के प्रयोग से उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले दाने (चमक, आकार एवं वजन) प्राप्त होते है।
• लस्टर से मिलता है - प्रति एकड़ अधिक पैदावार एवं अधिक लाभ ।
प्रयोग मात्रा – 384 मिली प्रति एकड़
प्रयोग का उचित समय - पहला आवेदन - रोपाई के बाद 40-55 दिन
दूसरा आवेदन – पहले छिड़काव के 15 दिन बाद
चुनौती - ब्लास्ट
धान की फसल में ब्लास्ट नामक रोग पौधों की पत्तियों को नुकसान पहुँचाता है। रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर डायमण्ड के आकार का घाव देखा जा सकता है जो कि सफ़ेद या स्लेटी रंग का दिखता है। यह घाव गहरे हरे रंग या भूरे रंग के बाँर्डर से घिरा होता है। ये घाव आपस में संगठित होकर सभी पत्तों को नष्ट कर सकते हैं। यह रोग पौधों के अन्य हिस्सों जैसे गर्दन, तने की गाठों, ईयर हेड्स, कॉलर तथा सहगाँठों को भी प्रभावित करता है।
रोग प्रबंधन
• कासु-बी एक प्राकृतिक फफूंदनाशक है।
• कासु-बी एक अन्तः प्रवाही जीवाणुनाशक और फफूंदनाशक है।
• कासु-बी अपनी अन्तः प्रवाही एंटीबायोटिक कार्य प्रणाली के कारण, यह पौधों में तेज़ी से फैलता है और बीमारियों को प्रभावी तरीके से नियंत्रित करता है।
• कासु-बी का प्रयोग बीमारी आने के पहले तथा बीमारी आने के बाद भी किया जा सकता है।
प्रयोग मात्रा – 400-600 मिली प्रति एकड़
प्रयोग का उचित समय - ब्लास्ट संक्रमण शुरु होते ही।
चुनौती - पोषण प्रबंधन
धान की अधिक पैदावार के लिये एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन एक महत्वपूर्ण पद्धति हैं, इसमें रसायनिक उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व, खाद एवं आदि का समुचित उपयोग किया जाता हैं| एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन सभी प्रकार के आदानों को आवश्यकतानुसार उपयोग करने के लिये बढ़ावा देता हैं | मृदा के स्वास्थ्य को बनाये रखने, मृदा की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने एवं लाभकारी सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ाने के लिये एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन अत्यंत आवश्यक हैं।
पोषण प्रबंधन
• मैक्सयील्ड पौधों की वानस्पतिक एंव प्रजनन अवस्था के दौरान प्रकाश संश्लेषण की क्रिया एवं पौधों की मेटाबॉलिज़्म प्रक्रिया को बढ़ाता है।
• मैक्सयील्ड बड़ी पतियों की बढ़वार में सहायक है। इसके साथ-साथ यह अच्छे जड़ तंत्र, तने की वृद्धि, अच्छे फुटाव और दानों के बनने में तथा दानों के अच्छी तरह से परिपक्व होने में सहायक है।
• मैक्सयील्ड दानों का आकार बढ़ाता है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।
• मैक्सयील्ड धान की मूल्यांकन एवं बिक्री योग्यता बढ़ाता है। अतः यह किसानों को उनके निवेश पर बेहतर आय प्राप्त करने में मदद करता है।
प्रयोग मात्रा – 250-300 मिली प्रति एकड़
प्रयोग का उचित समय - पहला आवेदन - रोपाई के 0-35 दिन में
दूसरा छिड़कावः रोपाई के 65-90 दिन में