कीटनाशकों के बारे में फैले आम मिथक जो असत्य हैं
आजकल मीडिया और सोशल मीडिया में Agrochemicals अर्थात् कीटनाशकों को लेकर भाँति-भाँति के पोस्ट आते रहते हैं। एक आम धारणा यह है कि कीटनाशक हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कीटनाशक हमारी फ़सलों की रक्षा करने के लिए उतने ही आवश्यक हैं जितनी डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयां हमारे शरीर के लिए। ये रसायन भी, एक प्रकार की दवाई है जो एक पौधे को बाहरी आक्षेप से बचाने का काम करती है।
और तो और, आज भारत की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था और जनसंख्या, दोनों को ही बेहतर कृषि उपज की ज़रूरत है। खेती से देश के 1.3 अरब लोगों को सिर्फ़ खाना ही नहीं मिलता, बल्कि देश के अनेक उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति भी किसान ही करते हैं। ऐसे में यह बहुत ज़रूरी है कि देश की कृषि योग्य भूमि से अधिकतम उत्पादन किया जाए। कीटनाशकों का विवेकशील और सुरक्षित उपयोग न केवल फसल को होने वाले असामयिक नुक़सान को रोकता है बल्कि देश की प्रगति में भी योगदान देता है।
आज हम कुछ ऐसे मिथकों को तोड़ने का प्रयास करेंगे जो जन-मानस में सोशल मीडिया की वजह से रच-बस गए हैं।
कीटनाशकों के उपयोग से कैन्सर फैलता है
यह एक बहुत ही आम मिथक है कि कीटनाशकों के उपयोग से पैदा की गई फसलें ज़हरीली होती है और हमारे स्वास्थ्य को नुक़सान पहुँचाती है। यहाँ तक कहा जाता है कि ऐसे अन्न के सेवन से कैन्सर और जन्म दोष जैसी भयावह बीमारियाँ होने का ख़तरा होता है। जबकि सत्य इस से बहुत परे है।
भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले एग्रोकेमिकल्स के परीक्षण की एक वैधानिक प्रक्रिया है। पंजीकरण से लेकर सुरक्षा मानकों पर खरा उतरने तक के लिए निर्माता कम्पनियों को बहुत ही कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है। अगर कोई कीटनाशक हमारे स्वास्थ्य ले लिए हानिकारक पाया जाता है तो उसे सरकार द्वारा मानित ही नहीं किया जाता। आज भारत में उपयोग किए जाने वाला कोई भी कीटनाशक निर्णायक रूप से कार्सिनोजेनिक या टेराटोजेनिक नहीं माना गया है। इसलिए यह कहना कि कीटनाशकों से बीमारियाँ फैलती हैं, क़तई सही नहीं है।
तथ्य: अखिल भारतीय अवशेष नेटवर्क ने 2012-18 के बीच 1,23 000 से अधिक कीटनाशकों का परीक्षण किया और केवल 2.04% नमूने ही न्यूनतम अवशेष सीमा से अल्प मात्रा से ऊपर पाए गए हैं।
कीटनाशक उत्पादन बढ़ाने का एक शॉर्टकट है
यह भी एक व्यापक मिथक है कि कीटनाशकों का उपयोग असामान्य रूप से फ़सलों की पैदावार बढ़ाने के लिए किया जाता है। जबकि यह बात भी पूरी तरह से असत्य है। कीटनाशक तो फसल के स्वास्थ्य और संरक्षण के लिए बने हैं। इनके उपयोग से 40,000 से ज़्यादा क़िस्मों के खरपतवार, कीड़े, कवक, बैक्टीरिया, वायरस और हानिकारक सूक्ष्मजीव नष्ट करने में मदद मिलती है जिससे पौधे अपनी नियत गति से बढ़ पाते हैं। अधिक्तम कीटनाशक मित्र कीटों एवं लाभकारी सूक्ष्मजीवों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं करतें हैं |
भारत में सबसे ज़्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है
यह एक ऐसा मिथक है जिसे बड़ी आसानी से आँकड़ो की सहायता से झुठलाया जा सकता है। FICCI द्वारा 2016 में जारी एक रिपोर्ट बताती है कि प्रति हेक्टेयर खपत के हिसाब से अगर तुलना की जाए तो भारत में कीटनाशकों का इस्तेमाल सबसे कम किया जाता है। हमारे यहाँ एक हेक्टेयर में मात्र 0.6 किलोग्राम कीटनाशक डाले जाते हैं, जबकि अमेरिका और जापान जैसे देशों में यह मात्रा क्रमशः 7 किलोग्राम और 11 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।
Bacterial Leaf Spot: एक नए अध्ययन के अनुसार, भारत के पास अमेरिका और चीन की तुलना में अधिक कृषि भूमि है।
Anthracnose: भारत के पास 179.8 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है जो किसी भी देश के तुलना में सबसे ज़्यादा कृषि योग्य भूमि है, जबकि अमेरिका के पास 167.8 मिलियन हेक्टेयर और चीन के पास 165.2 मिलियन हेक्टेयर ही कृषि योग्य भूमि है। परन्तु जब बात कीटनाशक इस्तेमाल की होती है – भारत सालाना कीटनाशक खपत में विश्व के अन्य देशों के तुलना में काफ़ी कम कीटनाशक उपभोग करता है – भारत विश्व में 10 वीं स्थान पर आता है |
भारत में सबसे ज़्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है
तथ्य: जानकारों का कहना है कि खेती की उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल न करने के कारण ही भारत में प्रति एकड़ उत्पादन दूसरे देशों से काफ़ी कम है।
आज जैविक खेती एक स्थायी विकल्प है
आप किसी भी जैविक फार्म से उपज के आँकड़े उठा कर देख लें, उनमें और एक सामान्य खेत - जिसमें नाम मात्र कीटनाशकों का उपयोग किया गया हो - दोनों की पैदावार में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ पाएँगे। तथ्य यह है कि जैविक खेती किसी भी प्रकार से उच्च उत्पादक, गहन खेती का पर्याय नहीं बन सकती। देश की आबादी 1.3 अरब के पार हो चुकी है और इतने लोगों के भरण-पोषण के लिए, उन्नत तकनीक वाली खेती की आवश्यकता को, ऐसे मिथकों द्वारा नकारा नहीं जा सकता।
वैसे भी, घटती दुधारू पशु आबादी के कारण जैविक खाद एक दुर्लभ वस्तु बनती जा रही है। और हम सब जानते हैं कि जिस चीज़ की आपूर्ति कम होती है उसकी क़ीमत उसी अनुपात में बढ़ती जाती है। ऐसे में जहां एक ओर हम किसानों की आय को दोगुना करने का संकल्प लिए चल रहे हों और दूसरी तरफ़ उनके उत्पादन मूल्य में असामान्य वृद्धि की वकालत करें तो यह बात हास्यास्पद लगती है।
सो अगली बार जब आपको सोशल मीडिया पर कोई ऐसा संदेश मिले जिसमें कीटनाशकों के बारे में ये मिथक प्रकाशित हों तो विश्वास न करें, बल्कि संवाद करें और इन सत्यों को उजागर कर अपने मित्रों और परिजनों को सजग करें।